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बुद्धकालीन भारत

                बुद्धकालीन भारतवर्ष में अनेक गणतन्त्र, राजतन्त्र तथा साम्राज्य थे। उस समय चार प्रमुख साम्राज्यों, 16 महाजनपदों और दस गणराज्यों का उल्लेख इतिहास में मिलता है। प्राचीन प्रमुख राज्य महाजनपद के रूप में जाने जाते थे। उन्हीं सोलह महाजनपदों में चार मगध, कोशल, वत्स और अवन्ती को प्रमुख साम्राज्य के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त थी। सूर्यवंश की शाखाओं का शासन प्राचीन राज्य कोशल में चल रहा था। और गौतम बुद्ध के समय तक कोशल राज्य में सवा सौ से अधिक पीढियां राज्य कर चुकी थी। इतनी  लम्बी राज्यवंशावली विश्व के किसी राज्य में अविच्छिन रूप से उपलब्ध नहीं है। इसलिए कोशल वंश को प्राचीन भारतीय इतिहास का मेरूदण्ड या आधार स्तम्भ माना जा सकता है।

इस दृष्टि से कोशल के बाद मगध राज्य का महत्व है। महाभारत पूर्वकाल से गुप्तकाल तक मगध का राजवंश भी क्रमबद्ध रूप से हो जाता है। यद्यपि मगध में इस अवधि में अनेक राजवंशों ने शासन किया, फिर भी डेढ सौ से अधिक राजाओं की क्रमबद्ध सूची हमारे पास उपलब्ध है। हम जानते हैं कि हस्तिनापुर के प्रशिद्ध पाण्डव वंश के ही एक राजा नृचक्नु ने कौशाम्बी को राजधानी बनाया था। इस प्रकार हस्तिनापुर के बाद कौशाम्बी भारत की प्रतिष्ठित राजधानी मानी गई है। इसी प्रकार महाभारत युद्ध के बाद महाभारत युद्ध के बाद उभरने वाला एक और प्रमुख राज्य अवन्ति बहुत ही शक्तिशाली और मगध का प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी साम्राज्य था।

         इनन चार प्रमुख साम्रज्य़ों कोशल, मगध, वत्स और अवन्ति के बाद सोलह जनपदों में पांचवा प्रमुख जनपद अंग था। यह मगध की पूर्वी सीमा पर स्थित था। अंग राज्य की राजधानी चम्पा थी जो चम्पा नामक नदी के तट पर स्थित थी। चम्पा नदी मगध और अंग राज्यों की सीमा बनाती है। आधुनिक भागलपुर जिले के आसपास का क्षेत्र अंग राज्य या महाजनपद में माना जाता है। हम जानते हैं कि महाभारत काल में कर्ण को अंग का ही राजा बनाया गया था। महाभारत से पूर्व काल की अंग राज्य की वंशावली उपलब्ध होती है, लेकिन बाद में कर्ण के पुत्र के बाद समाप्त हो जाती है।

काशी भी प्राचीन भारत का प्रतिष्ठित जनपद हो रहा है। इस राज्य की राजधानी वाराणसी थी। शक्तिशाली राज्य काशी का संघर्ष कोशल के साथ भी चलता रहा है।

वज्जि महाजनपद के अन्तर्गत विदेह और निकटवर्ती वैशाली राज्य के क्षेत्र सम्मिलित थे। वैशाली, मिथिला और कुण्डग्राम इसके प्रमुख नगर थे। हम जानते हैं कि मिथिला अति प्राचीन काल से निमि के वंशज जनक राजाओं की राजधानी रही है। प्राचीन काल में इसे विदेह या मिथिला राज्य कहा जाता था। जनक वंशी राजा भी सूर्यवंश की ही एक शाखा निमिवंश में हुए थे। कोशल की तरह मिथिला अति प्राचीन राज्य हैंमल्ल भी इसी तरह का एक संघ था। कुशीनगर एक पावा इसके प्रमुख नगर थे वर्तमान कसया के आसपास का क्षेत्र इसमें सम्मिलित था।चेदि भी भारत का प्राचीन राज्य है। महाभारत काल में इस राज्य का उल्लेख मिलता है। उस समय चेदि राज शिशुपाल कृष्ण की एक बुआ के ही पुत्र थे और कृष्ण के हाथों ही मारे गये थे। आधुनिक बुन्देलखण्ड ही प्राचीन चेदि राज्य था। बुद्ध काल में उसकी राजधानी शक्तिमती नगर में थी।

   कुरु जनपद का प्राचीन भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। कोशल के रघुवंश की शक्ति समाप्त होने के बाद भारत की केन्द्रीय सत्ता लम्बे समय तक कुरुवंश के पास ही रही। इसकी प्राचीन राजधानी हस्तिनापुर थी। हस्तिनापुर के गंगा की बाढ में नष्ट हो जाने पर पाण्डु वंशियों ने कौशाम्बी को प्रमुख राजधानी बना लिया और युधिष्ठिर की राजधानी के रूप में बसाया गया नगर इन्द्रप्रस्थ प्रान्तीय राजधानी हो गया। बाद में कौशाम्बी वत्स की राजधानी कही जाने लगी और इन्द्रप्रस्थ को कुरु राजधानी का सम्मान मिला।  बुद्धकाल तक इन्द्रप्रस्थ में कुरुवंश के ही शासक राज्य कर रहे थे।पाञ्चाल भी भारत का प्राचीन प्रमुख राज्य रहा है। शक्तिशाली रघुवंश का वर्चस्व तोडकर चक्रवर्ती भारत सम्राट बनने का श्रेय पाञ्चाल नरेश सुदास को ही प्राप्त है। कुरु और पाञ्चाल मूलतः एक ही वंश पुरुवंश की ही शाखांए हैं। सूर्यवंश की शक्ति कम होने के बाद कोशल का महत्व घट गया और कुरु तथा पाञ्चाल राज्य ही भारत के शक्ति केन्द्र बने।

    पाञ्चाल प्रदेश मुख्यतः उत्तर पाञ्चाल और दक्षिण पाञ्चाल में विभाजित है। उत्तर पाञ्चाल में मुख्यतः आधुनिक रूहेलखण्ड का क्षेत्र आता है। उसकी राजधानी अहिच्छत्र था। यह नगर वर्तमान बरेली जनपद की आंवला तहसील के अन्तर्गत रामनगर के निकट स्थित था। दक्षिण पाञ्चाल की राजधानी काम्पिल्य थी जो फर्रूखाबाद जिले में स्थित है। प्रसिद्ध कान्यकुब्ज या कन्नौज तथा ब्रह्मावर्त (बिठूर) आदि क्षेत्र इसी के अन्तर्गत आते थे। इसकी पूर्वी सीमा पर वत्स या कौशाम्बी राज्य था।मत्स्य जनपद कुरु राज्य के दक्षिण तथा यमुना नदी के पश्चिम में स्थित था। वर्तमान भरतपुर, धौलपुर, जयपुर, अलवर आदि क्षेत्र मत्स्य जनपद के भू भाग थे। इसकी राजधानी विराट नगर थी। इसी विराट नगर में पाण्डव भाइयों ने एक वर्ष का अज्ञातवास बिताया था। शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा थी। इस प्राचीन राज्य में यदुवंश की शाखाओं अन्धक वृष्णियों का शासन काफी समय तक रहा। बुद्धकालीन शूरसेन शासक अवन्ति पुत्र का उल्लेख मिलता है। अश्मक राज्य दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के किनारे पर स्थित था। इस जनपद की राजधानी का नाम पौदन्य था जो बाद में पोतन हो गया। बाद में शक्तिशाली अवन्ति के साम्राज्य में अश्मक भी सम्मलित हो गया।

गान्धार प्रदेश के अन्तर्गत पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त (अब पाकिस्तान) पेशावर, तक्षशिला आदि क्षेत्र आते थे। इस राज्य की राजधानी तक्षशिला थी। बुद्ध के समकालीन गान्धार नरेश पुष्कर सारिन थे। महाभारत काल में भी गान्धार की प्रमुख भूमिका रही थी गान्धार नरेश शकुनि ही हस्तिनापुर की सारी राजनीति के सूत्रधार थे। बुद्ध पूर्व काल में एक प्रमुख गान्धार शासक नग्नजित भी हुए।कम्बोज महाजनपद गान्धार के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में स्थित था। मोटे तौर पर कहा जा सकता है। कि आधुनिक अफगानिस्तान देश का अधिकांश भाग कम्बोज प्रदेश में अन्तर्गत आता था। उसकी राजधानी राजपुर थी महाभारत में भी कम्बोज राज्य की भूमिका रही थी।

गौतम बुद्ध के समय का भारत राजनीतिक रूप से इन सोलह जनपदों में विभाजित था। इनमें अधिकांश में राजतन्त्र था। लेकिन वज्ज, मल्ल शूरसेन आदि में गणतन्त्र शासन प्रणाली चलती थी। अनुमान किया जा सकता है कि गंगा की बाढ में हस्तिनापुर नगर नष्ट हो जाने पर कौशाम्बी को नई राजधानी बनाने तक पाण्डव वंश की शक्ति कम होने लगी और काशी, कोशल, मगध, अवन्ति आदि का उदय शक्तिशाली राज्यों के रूप में हुआ। इस प्रतिद्वन्दिता का लाभ उठाकर अनेक राज्य स्वतन्त्र हो गये होगें। इस प्रकार भारत की राजनीतिक एकता को आघात लगा औप परस्पर लडने वाले अनेक साम्राज्य खडे हो गये।

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महान् विजेता सम्राट उदयन

              महात्मा बुद्ध के समकालीन भारत सम्राट उदयन थे। बौद्ध ग्रन्थों में भी उन्हें एक युद्धप्रिय और शक्तिशाली राजा बताया गया है। उनकी राजधानी कौशाम्बी थी। अतः उदयन को कौशाम्बी नरेश और वत्स नरेश भी कहा जाता है। उदयन सम्राट परीक्षित की की पचीसवीं पीढी में हुए थे। वे शतानीक द्वतीय के पुत्र थे। संस्कृत साहित्य में सम्राट उदयन धीरोदात्त नायक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। महाकवि भास के दो नाटकों स्वप्नवासदत्ता और प्रतिज्ञायौगन्धरायण के नायक उदयन ही हैं। हर्ष के दो नाटक प्रियदर्शनी तथा रत्नावली भी उदयन पर ही हैं। भास के अनुसार उदयन की मां विदेह की राजकुमारी थीं। वृहत्कथामञ्जरी तथा कथासरित्सागर में भी उदयन के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं।

सम्राट उदयन ने अनेक विवाह किये थे। समकालीन सभी प्रमुख राजवंशों की कन्याओं से उन्होनें विवाह किया था। अवन्तिनरेश महानरेश की पुत्री वासवदत्ता के साथ उदयन ने विवाह उनका अपहरण करके किया था। मगध के तत्कालीन शासक दर्शक की पुत्री पद़्मावती से भी उन्होनें विवाह किया था। अंग के राजा दृढवर्मन की पुत्री से भी उनका विवाह हुआ था। उनकी एक और पत्नी मागन्दीय का भी उल्लेख मिलता है।

हम निश्यचपूर्वक यह कह पाने की स्थिति में नहीं हैं कि सम्राट परीक्षित से सम्राट उदयन तक पचीस पीढियों और लगभग बारह शताब्दियों तक भारत की चक्रवर्ती सत्ता उसी वंश के पास बनी रही, परन्तु उदयन को महान सम्राट माना गया है। इतना निश्चित है कि उदयन अपने समय में भारत के सबसे शक्तिशाली सम्राट थे तथा भारत का बहुत बडा भूभाग उनके साम्राज्य में सम्मिलित था। उदयन के मन में भरतवंश के प्राचीन गौरव के अनुकूल चक्रवर्ती सत्ता स्थापित करने की महत्वाकांक्षा भी थी। उनके विजय अभियान का तथ्यात्मक और प्रमाणिक उल्लेख कथा सरित्सागर और प्रियदर्शिका में मिलता है। काशी नरेश ब्रह्मादत्त आरुणि ने बिना युद्ध के ही उनकी अधीनता स्वीकार कर ली थी।

दिग्विजय अभियान में उदयन ने पूर्व में बंग और कलिंग दक्षिण में चोल तथा कोल, पश्चिम में म्लेच्छ व तुरुष्क तथा पारसीक व हूण राज्यों पर भी विजय प्राप्त की थी। विदेह व चेदि राज्यों पर भी उन्होनें विदेह फताक फहरायी थी। उन्होनें अवन्ती को जीतकर उसकी राजधानी उदयनपुरी नाम से स्थापित की जो बाद में अपभ्रंश होकर उज्जैन कहलायी।

इससे स्पष्ट है कि सम्राट उदयन का साम्राज्य उनके बाद के किसा भी साम्राज्य से विशालता से कम नहीं था। इस विशाल साम्राज्य के निकट तत्कालीन मगध बहुत ही छोटा और महत्वहीन राज्य ही प्रतीत होता है। सम्भव है कि प्रतीकात्मक रूप में ही सही, मगध नरेश भी उसकी प्रभुसत्ता स्वीकार करते हों और युद्ध की आवश्यकता ही न पडी हो इस प्रकार उदयन पुरुवंश या कुरुवंश के अन्तिम सम्राट थे। उनके पश्चात चार पीढियों बाद ही यह प्राचीन राजवंश इतिहास के पन्नों में खो गया। मगध नरेश दर्शक की पुत्री से उदयन का विवाब हुआ था, यह तथ्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संकेत देता है। उदयन के समकालीन मगध नरेश विम्बसार थे। विम्बसार के बाद उनके पुत्र अजातशत्रु मगध के शासक बनें। दर्शक अज्ञात शत्रु के उत्तराधिकारी मगध नरेश थे। दर्शक की पुत्री की आयु उदयन से बहुत कम होनी चाहिये। एक प्रौढ़ या वृद्ध सम्राट उदयन के साथ दर्शक ने अपनी पुत्री का विवाह राजनीतिक मजबूरीवश ही किया होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि मगध पर उदयन के आक्रमण से भयभीत होकर ही दर्शक ने अपनी उनको अपनी पुत्री देकर सन्धि कर ली होगी। सम्राट उदयन की दिग्विजय और मगध के साथ उनके विवाह सम्बन्ध के स्वरूप को ध्यान में रखते हुए निर्विवाद रूप से उन्हें भारत का चक्रवर्ती सम्राट कहा जा सकता है।

सम्राट उदयन ने भरतवंश का गौरव पुनः स्थापित करने में बहुत कुछ सफलता प्राप्त कर ली थी। तत्कालीन भारत में मगध, अवन्ती और कौशल ही उसके प्रबल प्रतिद्वन्दी साम्राज्य थे। रत्नावली में उल्लेख है कि वत्स नरेश उदयन ने कोशल पर भी विजय प्राप्त की थी और स युद्ध में कौशल नरेश मारे गये थे। कुछ इतिहासकारों का मत है कि उदयन के साथ युद्ध में मारे गये कोशल नरेश विडूडभ या विरूद्धक हो सकते थे वे कोशल नरेश प्रसेनजित के उत्तराधिकारी पुत्र थे। राजा प्रसेनजित गौतमबुद्ध के समवयस्क थे। एक अवसर पर उन्होनें कहा था कि भगवन बुद्ध भी कौशलक हैं और मैं भी कौशलक हूँ। वे भी अस्सी वर्षीय़ और मैं भी अस्सी वर्षीय हूँ।

उसी अवसर पर जब प्रसेनजित बुद्ध से मिलने गये हुए थे, उनके पुत्र ने विद्रोह कर सत्ता हथिया ली। यह सूचना पाकर प्रसेनजित सहायता के लिए मगध गये लेकिन राजधानी राजगृह पहुँचने से पूर्व ही उनकी मृत्यु हो गई। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए इस सम्भावना पर भी विचार किया जाना चाहिए कि सम्भव है, कोशल पर विजय प्राप्त करने के लिए रणनीति के रूप में उदयन ने भी विद्रोह को समर्थन दिया और मगध नरेश अजातशत्रु और कोशल नरेश प्रसेनजित के बीज सन्धि न होने देने के लिए ही राजगृह के मार्ग में कोशल नरेश प्रसेनजित की हत्या करा दी गई हो।

इस प्रकार सैन्य बल और कुशल रणनीति का सहारा लेकर सम्राट उदयन ने अपने सभी प्रतिद्वन्दियों पर सफलता पूर्वक अंकुश लगाया तथा भारत में एकक्षत्र सम्राज्य स्थापित करने के बाद राष्ट्र की उत्तरी पश्चिमी सीमा के विदेशी राज्यों पर भी विजय पताका फहराई। इन सफलताओँ के प्रकाश में उदयन को भारत के महान पराक्रमी विजेता सम्राटों में गिना जाना चाहिए आवश्यकता है कि इतिहासकार सम्राट उदयन का उचित मूल्याकंन  करें। इसे आश्चर्य ही कहा जा सकता है कि आधुनिक इतिहासकार उन सभी की उपेक्षा करने का प्रयास करते हैं जिन्हें भारतीय परम्परा में गौरवपूर्ण स्थान दिया गया है।

उदयन की राजधानी कौशाम्बी का अत्याधिक व्यापारिक महत्व भी था। यह विदिशा होते हुए उज्जैन जाने के मार्ग में पडता था। उनके साम्राज्य में साहित्य, कला, कौशल और उद्योग व्यापार की भी उन्नति हुई। इसे केवल दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि पुरातत्व विज्ञान अभी तक उदयन से सम्बन्ध रखने वाला कोई महत्वपूर्ण प्रमाण नहीं खोज सका है। आधुनिक इतिहासकारों द्वारा उनकी उपेक्षा किए जाने का यह भी महत्वपूर्ण कारण है। यदि कुछ पुरातात्विक लेखों को खोज लिया गया होता तो उदयन की गणना   भी भारत के महान सम्राटों में की जाती।

सम्राट उदयन का समय निर्धारित करने के लिए हमारे पास कोई प्रत्यक्ष आधार नहीं है। हमारे पास मगध राजवंश का शासनकाल ही उपलब्ध है। पुराणों में कोशल और कौशाम्बी के राजाओं के नाम भी मिलते हैं, लेकिन शासनकाल नहीं। इसलिए हमें उदयन का समय निर्धारित करने के लिए भी मगध वंशावली का ही आश्रय लेना पडेगा। उदयन के समकालीन मगध के शासक विम्बसार, अजातशत्रु और दर्शक थे। मगध तिथिक्रम के अनुसार ये तीनों शासक युगाब्ध की तेरहवीं चौदहवीं शताब्दी में हुए।

     गौतम बुद्ध उदयन के शासनकाल में 44 वर्ष की आयु में कौशाम्बी आये थे। गौतम बुद्ध की मृत्यु अजातशत्रु के शासनकाल के आठवें वर्ष में हुई थी। उसके बाद अजातशत्रु के उत्तराधिकारी दर्शक की पुत्री से उदयन ने विवाह किया था। अतः उदयन गौतम बुद्ध काफी समय बाद तक भी जीवित रहे थे। अजातशत्रु ने लगभग तीस वर्ष शासन किया था। अतः अजातशत्रु की मृत्यु के बुद्ध के निधन के लगभग 22 वर्षों बाद अथवा बुद्ध के कौशाम्बी प्रवास के लगभग 58 वर्ष बाद हुई। इसका अर्थ है कि उदयन का शासनकाल भी काफी लम्बा रहा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि उदयन का समय युगाब्द या कलि सम्वत् की तेरहवीं शताब्दी या ईस्वी पूर्व 19वीं शताब्दी था। सम्राट उदयन का राज्यभिषेक युगाब्द की तेरहवीं शताब्दी के मध्य में तथा मृत्यु चौदहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षो में हुई होगी।

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      दोस्तो आगे की कहानी के लिये बने रहे हमारे साथ………

By Anil

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