vic of ram

लंका का पतन – राम की महान् विजय 

दशग्रीव रावण सीता को अपना वैभव दिखाकर प्रभावित करने का प्रयास किया। उन्होंने सीता को पटरानी बनाने तथा समस्त बल वैभव की स्वामिनी बनाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन राम को सच्चे मन से प्यार करने वाली सीता ने उन्हें कठोरता से झिड़क दिया और कहा कि तू इस शरीर को बन्धन में जाल सता है या टुकड़े-टुकड़े कर सकता है लेकिन सीता कभी भी राम के अलावा किसी अन्य की नहीं हो सकती। दशग्रीव ने सीता को प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर अशोक वाटिका में रखा और वहाँ महिला सुरक्षा कर्मियों का ही पहरा बैठाया। सीता की सुरक्षा में कोई भी पुरुष नियुक्त नहीं किया गया। दशग्रीव ने सीता को चेतावनी देते हुए कहा किय यदि बारह मास के अन्दर मेरी पटरानी बनना स्वीकार नहीं किया तो तुमको मार डाला जायेगा।

वे इन्द्रलोक की अप्सरा के साथ तो बलात्कार कर सकते थेलेकिन भारत की नारी के साथ नहीं। उन्हें सीता की स्वीकृति की आवश्यकता थी। उनका मानना था कि विवाहित स्त्री के साथ उसका इच्छा के बिना सहवास अनुचित था। इससे सिद्ध होता है कि राक्षस संस्कृति सामाजिक मर्यादायओं को मानती थी और शत्रुओं के साथ भी उसका पालन करती थी। अविवाहित कन्या का हरण करके विवाह करने की परम्परा तो राक्षस विवाह के रूप में मान्य हैपरन्तु विवाहित स्त्री के साथ बलात्कार घोर अनैतिक ही माना जाता था।

सीता की खोज में भटकते हुए राम और लक्ष्मण की भेंट जटायु से हुई। वे अत्यधिक घायल थे। उन्होंने किसी तरह राम को इतनी सूचना दी कि सीता को दशग्रीव रावण साथ ले गये हैं और उनके साथ युद्ध में ही मेरी यह दशा हुई। राम के सामने ही जटायु ने प्राण त्याग दिये। राम ने उनका विधिवत् अन्तिम संस्कार किया। आगे बढ़ने पर अयोमुखी राक्षसी से टकराव हुआ तो लक्ष्मण ने उसके नाककान और दोनों

 स्तन तलवार से काट दिये। यह घटना सीता के अपहरण स्थल जनस्थान दण्डकारण्य से काफी आगे दक्षिण की है। वह क्षेत्र क्रोञ्चारण्य से आगे मातङ्ग मुनि के आश्रम के निकट बताय गया है। उसी क्षेत्र में राम और लक्ष्मण ने कबन्द नामक दानव का भी वध किया जिनसे उन्हें सुग्रीव और ऋष्यमूक पर्वत के विषय में जानकारी मिली। कबन्ध ने राम को बताय कि पम्पा सरोवर के पश़्चिम में मातङ्ग ऋषि का प्राचीन आश्रम है जिसमें अब केवल शबरी निवास करती हैं। वे विद्वान् तपस्विनी हैं। पम्पा के पूर्व में ऋष्यमूक पर्वत है जिस पर सुग्रीव अपने सहयोगियों के साथ रहते है। उनके भाई बालि ने राज्य और उनकी पत़्नी पर अधिकार कर लिया है। सुग्रीव और आपका कष्ट समान है। अतः आप सुग्रीव से मित्रता कर लें। आप उनका कष्ट दूर करने में समर्थ हैं तथा मित्रता के साथ आपको सुग्रीव के राज्य की सेना और संसाधन प्राप्त हो जायेंगे। सुग्रीव राक्ष साम्राज्य से भली-भांति परिचित हैं। सीता को जहाँ भी रखा गया होगाउनके गुप्तचर खोज निकालेंगे।

राम पम्पा सरोवर पर गये। पहले शबरी का आश्रम देखा। वह पूरा क्षेत्र मातङ्गवन कहलाता था। मातङ्ग ऋषि के आश्रम में बालि नहीं जा सकते थे। इसलिए सुग्रीव उस क्षेत्र में आश्रम लिये हुए थे। राम से आकर पहले सुग्रीव के मन्त्री हनुमान मिले। उन्होंने दोनों में मित्रता करायी। वे भी सूर्यवंशी कहे जाते हैं। बालि की शत्रुता मय दानव के पुत्रों मायावी और दुन्दुभि से थी। बालि एक युद्ध में दुन्दुभि का वध कर चुके थे। मायावी के साथ युद्ध एक गुफा में हुआ जिसके बाहर सुग्रीव रक्षक के रूप में थे। बालि को मारा गया समझकर सुग्रीव किष्किन्धा आ गये और राजा बन गये। जब बालि लौटे तो सुग्रीव को राज्य से बाहर निकाल दिया। अतः दोनों भाईयों के बीच शत्रुता हो गयी। बालि ने दुन्दुभि दानव का वध करके शव को मातङ्ग आश्रम क्षेत्र में फेंक दिया था। अतः ऋषियों के क्रोध के भय से बालि मातङ्ग क्षेत्र में नहीं जाते थे।

राम से मिलकर हनुमान को आभास हुआ कि इनको भी सुग्रीव की सहायता चाहिए तो उन्होंने मन ही मन अपने स्वामी सुग्रीव का स्मरण का और उन्हें लगा कि सुग्रीव का राज्य वापस मिलने का योग बन रहा है। हनुमान की आशा सत्य हुई। राम ने भरोसा दिलाकर सुग्रीव को बालि से युद्ध करने के लिए भेजा। एक बार वे हारकर भाग आये। लेकिन दोबारा राम साथ गये और कुछ दूरी पर धनुष पर बाण चढ़ाकर खड़े रहे। जब बालि अपने भाई सुग्रीव के साथ युध् में उलझे हुए थेराम ने बाण छोड़ दिया जो सीने में लगा और बालि घायल होकर गिर पड़े। उन्होंने राम को बहुत धिक्कारा और कहा कि रघुवंश के धर्मात्मा और वीर सम्राट दशरथ ने तुम्हारे जैसे शठ और पापी को कैसे जन्म दे दिया। तुम्हारे राज्य में धरती पापी की पत़्नी की तरह दुःखी रहेगी। तुमने स्वार्थवश मुझे मारा है। यदि तुम मुझसे कहते तो मैं एक दिन में ही सीता को खोज कर ले आता। यदि तुम सामने आकर युद्ध करते तो अब तक जीवित नहीं होते। राम ने कहा कि इस समय के चक्रवर्ती सम्राट भरत हैं। हमें तथा अन्य राजाओं को भरत का आदेश है कि धर्म के प्रसार का प्रयास किया जाये। राजाओं में श्रेष्ठ भरत के राज्य में धर्म का उल्लंघन करने वालों को हम उनकी ओर से दण्ड देते हैं। तुमने अपने छोटे भाई की पत़्नी रूपा का उपभोग किया हैजो अपराध है। अतः राजा भरत के आदेशानुसार तुम्हें दण्ड दिया गया। इसके अलावा मैंने सुग्रीव के साथ मित्रता का निर्वाह भी किया है। अर्थात् राम केवल भरत के राज्य के कानून-व्यवस्था देख रहे थे। सुग्रीव को पत़्नी मिला और राज्य भी। वे सैन्य संगठन में लग गये। सीता की खोज के लिए चारों दिशाओं में अभियान दल भेजे गये। इसी क्रम में बाल्मीकि ने कम से कम सम्पूर्ण एशिया के भूगोल का वर्णन किया है। उत्तर में उत्तरी ध्रुव महासागर तकपूर्व में यवद्वीप (जावा)सुमात्रावरुणद्वीप से आगे आधुनिक प्रशान्त महासागर तक तथा पश़्चिम में क्षीर सागरलोहित या लाल सागरमृत सागर तक अभियान दल भेजे गये थे। दक्षिण के अभियान दल के नायक केसरी के पुत्र हनुमान सफल सिद्ध हुए। उन्होंने दक्षिण भारत का चप्पा-चप्पा छान मारा और दशग्रीव की राजधानी लंका तक जाकर सीता से मिलने और राम का सन्देश देने में सफल रहे। हनुमान का यह अभियान योद्धा का नहीदक्ष गुप्तचर का कार्य था। हनुमान का सीता खोज अभियान आधुनिक जासूसी उपन्यासों से कम रोचक नहीं था। हनुमान ने सीता को अशोक वाटिकाप्रमदानव में चैत्य प्रासाद (धर्मस्थल) के निकट देखा था।

जब वे एक वृक्ष पर छिपे हुए थेसंयोगवश दशग्रीव वहाँ आये। हनुमान ने उन्हें पहचानने का प्रयास किया। उनके साथ अनेक स्त्रियां थीं। उन्होंने सीता से कहा कि बारह मास की अवधि में केवल दो मास शेष हैं। यदि तू दो मास में मेरी शैय्या पर नहीं आयी तो मेरे रसोइये तेरी बोटी-बोटी काटकर भोजन बना देंगे। हनुमान ने उनके चले जाने के बाद सीता को राम की दी हुई मुद्रिका दी। सारा समाचार पाकर सीता ने हनुमान को चूड़ामणि दी और शीघ्र मुक्त कराने के लिए राम से आने के लिए कहा। हनुमान ने सीता को साथ ले चलने का प्रस्ताव रखालेकिन सीता ने अनेक खतरे तथा राम के यश न होने की बात कहकर ठुकरा दिया।

उसके बाद हनुमान ने लंका में भीषण विध्वंस किया। अशोक वाटिका उजाड़ दीचैत्य प्रासाद को ध्वस्त कर दिया और प्रहस्त के पुत्र जम्बुमालीमन्त्रयों के सात पुत्रोंपाँच सेनापतियों तथा रावण के पुत्र अक्षयकुमार सहित दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। मेघनाद ने हनुमान को बन्दी बनाया और दशग्रीव के दरबार में पेश कर दिया। राजदूत का वध न करने की आचार संहिता के कारण मृत्युदण्ड नहीं दिया जा सका और हनुमान लंका में भीषण अग्निकाण्ड करके वापस लौट आये। हनुमान से सीता का समाचार पाकर राम ने सुग्रीव के नेतृत्व में सेना सहित प्रयाण कर दिया। विशाल सेना ने समुद्र तट पर डेरा डाला। नल और नील ने समुद्र पर पुल बनवाया। इसी बीच दशग्रीव से मतभेद होने पर उनके छोटे भाई विभीषण राम से आकर मिल गये। उसके बाद अपने युग के भीषणतम महायुद्ध में लंका की सम्पूर्ण सैन्य शक्ति का व्यापक रूप से विध्वंश हुआ। परिवार सहित दशग्रीव रावण मारे गये और लंका पर राम का अधिकार हो गया।

लंका युद्ध में दशग्रीव के साथ युद्ध में घायल होकर राम और लक्ष्मण दोनों मूर्क्षित हुए। जाम्बवान् के आदेश पर हनुमान हिमालय से कोई दिव्यौषधि लाये थे जिससे राम और लक्ष्मण स्वस्थ हुए। मेघनाद को मारकर लौटे लक्ष्मण की चिकित्सा सुषेण ने की थी। सुषेण नाम के दो लोग सुग्रीव की सेना में थे। एक थे सुग्रीव के ससुर और दूसरे सेनापति। सुग्रीव पर्वतीय जनजाति वानर समुदाय के सदस्य थे और वनस्पतियों के औषधीय गुणों से वे लोग भली-भांति परिचित थे। मेघनाद जब मन्दिर में पूजा कर रहे थेतब विभीषण की सलाह पर आक्रमण किया गया था। लक्ष्मण के साथ विभीषण भी गये थे।

युद्ध के दौरान राम को सुग्रीव के माध्यम से दक्षिण भारत से विशाल सेना की सहायता तो मिली हीसाथ ही रावण से पराजित इन्द्र ने भी सेना और युद्ध सामग्री से सहायता दी। इन्द्र द्वारा दिये गये युद्धक रथ पर राम ने युद्ध किया। स्वयं इन्द्र ने राम के अधीन युद्ध में भाग लिया। यह श्रेय राम से दो हजार से अधिक वर्षों पूर्व उनसे लगभग साठ पीढ़ी पहले हुए पुरञ्जय ककुत्स्थ को ही मिला था। उन्हीं के नाम पर राम को काकुत्स्थ भी कहा गया। लंका से सुषेण को लाया जानाराम के द्वारा रामेश्वरम् की स्थापनादशग्रीव रावण की नाभि में अमृत होने जैसी बातें हजारों वर्ष बाद की कवि कल्पना से अधिक महत़्व नहीं रखती हैं। लंका युद्ध का ऐतिहासिक महत्व है। अयोध्या में रघुवंश और लंका में राक्षस शक्ति परस्पर प्रतिद्वद्न्द्वी पड़ोसी शक्तियां थीं। एक दिन दोनों में टकराव और एक का पतन निश़्चित था। जिस तरह से नाटकीय घटनाक्रम और चमत्कारी ढंग से लंका का पतन हुआउस पर विचार करके आज भी रोमाञ्च हो जाता है। अयोध्या में राजमहल के षड़यन्त्र से निर्वासित राम एक के बाद एक संकट से जूझते हुए हताश स्थिति में थे। सुग्रीव से मैत्री स्वयं टूटते हुए राम के लिए राम के लिए सञ्जीवनी बन गयी। युद्ध के दौरान भी एक बार विजय से निराश और हार की आशंका से पीड़ित राम ने सेना से लौट जाने को कह दिया था। लेकिन इन्द्र की सहायता मिलीयुद्ध का पासा पलटा और राम एक ही युद्ध में विश्व विजयी हो गये।


 राम ने लंका पर विजय के बाद दशग्रीव रावण के विद्रोही भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। अब वि

भीषण राम के अधीन माण्डलिक सामन्त के रूप में ही सहीपर लंका के शासक तो थे ही। राम ने उन्हें सीता को लाने का आदेश दिया। राम के शिविर के बाहर सीता की पालकी रोकी गयी। राम के आदेश पर सीता को वहाँ से पैदल ही लाया गया। राम के सभी सहयोगी सीता को देखने के लिए उत्सुक थे। सुरक्षाकर्मियों ने भीड़ को हटाना शुरू 

किया तो राम ने कहा किय ये सभी लोग मेरे अपने हैं। सभी को सीता का दर्शन करने दो।

जब सीता राम के पास पहुं

चीतब राम ने कहा कि मैंने रघुकुल के सम्मान की रक्षा के लिए इतना बड़ा युद्ध लड़ा और तुम्हें मुक्त कराया है। अब तुम पूरी तरह स्वतन्त्र होजहाँ जाना चाहोजा सकती हो। सीता को राम से ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी। उन्होंने राम के इस व्यवहार को अनुचित बताया और अग्निप्रवेश का निर्णय ले लिया। इस निर्णय पर राम के पूरे शिविर में अवसाद और विक्षोभ फैल गया। इन्द्र के नेतृत्व में प्रमुख देवगण भी वहाँ थे। देवों ने विजयी राम को आदेश देते हुए 

सीता को साथ रखने के लिए कहा। राम ने कहा कि सीता का निवास सदैव मेरे हृदय में है। यह बात तो मैंने लोक व्यवहार के विचार से ही कही थी। इसी प्रकरण को सीता की अग्नि परीक्षा उचित ही कहा जाता है।

इसके बाद राम विजयी सेना के साथ अयोध्या चले गये। सीता के कहने पर सेना ने किष्किन्धापुर में एक रात विश्राम किया और वहां तार तथा अन्य प्रमुख लोगों को भी साथ लेकर आगे बढ़े। अब तक राम के वनवास की अवधि भी पूरी हो चुकी थी। इतनी बड़ी 

विजय के बाद राम महानायक बन चुके थे। उनके स्वागत के लिए पूरी अयोध्या उत्सुक थी। भरत ने राम को सहजता से राज्य सौंप दिया। 

vv v vv

                                                                                     दोस्तो आगे की कहानी के लिये बने रहे हमारे साथ………

By Anil

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *